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कर्म और ज्ञान -- भज गोविन्दम् भज गोविन्दम् भज गोविन्दम् मूढमते। आसन्ने सम्प्राप्ते मरणे नहि नहि रक्षति "डुकृञ् करणे"।। आदि शङ्कराचार्य ने एक वृद्ध को महर्षि पाणिनी के अष्टाध्यायी के सूत्र : डुकृञ् करणे को रटते देखा तो उससे कहा - नहि नहि रक्षति "डुकृञ् करणे"। जिसका वाच्यार्थ यह था कि मृत्यु आने के समय "डुकृञ् करणे" रक्षा नहीं करता है। इस एक पंक्ति के आधार पर आचार्य ने भज गोविन्दम् स्तोत्र की रचना की। इसमें यद्यपि गोविन्द अर्थात परमात्मा का ही उल्लेख अप्रत्यक्षतः किया गया है, किन्तु इसमें प्रत्यक्षतः संबोधित तो उस वृद्ध को किया गया था, जो इस सूत्र को यंत्रवत् रट रहा था। लक्षितार्थ या लक्ष्यार्थ यह था कि उसका ध्यान कर्म की मर्यादा और सीमितता को समझकर उस ईश्वर की ओर आकर्षित हो, जिसका भजन ही मृत्यु से रक्षा करता है। It is important to see how the root verb "डु" in संस्कृत turned into "do" in English. Even the pronunciation is also exactly similar. इससे यह स्पष्टहै कि "कृ" करोति / कुरुते और "डु" धातु संस्कृत में शुर...