Condition/ Conditioning.
सन् दिशन् / तिङ्
इस पोस्ट को हिन्दी भाषा में लिखना आवश्यक तो नहीं, उचित अवश्य होगा।
सन् और दिशन् सन् और दिश् धातु के शतृ प्रत्यय के रूप हैं। तात्पर्य है - होता हुआ और दिशा देता हुआ।
तिङ् सुप्तिङ् प्रत्यय है सुप् का प्रयोग स्वौजस् सूत्र में और तिङ् का प्रयोग किसी धातु के वर्तमान काल, अन्य पुरुष एकवचन के लिए किया जाता है। जैसे -
रामः गच्छति - इस वाक्य में गच्छति पद गम्-गच्छति का तिङ् प्रत्यय सूचक प्रयोग है।
सन् पद को सं उपसर्ग के रूप में भी देखा जा सकता है। जैसे "संगच्छध्वम्" में दृष्टव्य है।
अंग्रेजी भाषा में ing किसी धातु के कार्य की निरंतरता का द्योतक होता है। जैसे -
I am coming / going.
इस वाक्य में।
इसे अंग्रेजी भाषा के व्याकरण में -
Infinitive / Gerund
के रूप में जाना जाता है, जो संस्कृत भाषा के तिङ् प्रत्यय का ही प्रयोग है, जिसमें तिङ् से ङ् का लोप हो जाता है। अक्षरसमाम्नाय के -
हलन्तः लोपसूचकाः सूत्र से भी यह स्पष्ट है।
Infinitive और Gerund भी पुनः -
अनुप्रणीत इव तथा गत रुद्धम् के सज्ञात / सजात / cognates हैं।
अब दो शब्द और,
पहला अंग्रेजी भाषा का
Thank जैसा कि Thank You! इस वाक्य में होता है। Thank You इस वाक्य में प्रयुक्त किया जानेवाला Thank शब्द संस्कृत भाषा के धन्य / धन्यकः से व्युत्पन्न किया जा सकता है और You तो स्पष्ट ही है कि संस्कृत भाषा के युष्मत् सर्वनाम से ही व्युत्पन्न सज्ञात / सजात / अपभ्रंश है।
इससे एक शब्द தமிழ் भाषा का -
வணக்கம்
याद आया, जो संभवतः संस्कृत भाषा के -
वन्दकम् का ही एक परिवर्तित रूप प्रतीत होता है।
जब मैं आठ वर्ष की आयु का था तो पहली बार एक पार्क में गुलाब के एक ही पौधे पर भिन्न भिन्न रंगों के दो फूलों को देखकर चकित हुआ था। बहुत समय बाद पता चला था कि ऐसा दो भिन्न प्रकार के और एक ही प्रजाति के पौधों की कलम काटकर एक दूसरे पर लगा देने से भी किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ आम के एक वृक्ष के बारे में सुना था जिसके एक ही वृक्ष पर एक सौ से भी अधिक प्रकार के आम के फल लग रहे थे।
संस्कृत और दूसरी सभी भाषाओं का आपसी संबंध कुछ इसी तरह का जान पड़ता है। यह भी कहा जा सकता है कि यद्यपि सभी भाषाओं की उत्पत्ति वाणी से ही हुई है, किन्तु वाणी से ही प्राकृत और संस्कृत सहित सभी अन्य भाषाओं की भी उत्पत्ति हुई होगी। कुछ अति उत्साही भाषाप्रेमियों का यह आग्रह होता है कि संस्कृत भाषा ही शेष सभी भाषाओं की जननी है, तो ऐसे ही दूसरे कुछ लोगों का आग्रह होता है कि संस्कृत भाषा या कोई और भाषा ही सर्वाधिक प्राचीन भाषा है। किन्तु संरचना के आधार पर विभिन्न भाषाओं की उत्पत्ति के बारे में यदि खोज की जाए तो यह पता चलेगा कि संस्कृत भाषा का आविष्कार वेदों की सनातन ईश्वरीय वाणी की संरचना को समझने के प्रयत्न से हुआ था, न तो क्रमशः समय, स्थान और परिस्थितियों के प्रभाव से सतत परिवर्तित होती रहने होनेवाली किसी भाषा की तरह।
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